बुधवार, 14 दिसंबर 2016

सिपाही का दर्द

- सतीश कुमार पाण्डेय 

धूप मे लाचार खड़े सिपाही का दर्द लिख रहा हूँ
प्यास के मारे बादलो को निहारते 
आँखो का पानी लिख रहा हूँ । 
अफसर,नेता,गुंडा की यातनाएँ 
वेदना, घुटन से मजबूर,लाचार
सिपाही की कहानी लिख रहा हूँ ।
माना कि सब भले नही है इनमे भी
मगर जो है उनका दर्द लिख रहा हूँ । 
मन करता है इनके महूबूब के पायल की आवाज लिखूँ ,
इनके छोटू और गुड़ियाँ का दुलार लिखूँ , 
पर तीन दिन की छुट्टी के लिए,
अपने अफसर के सामने सर झुकाये खड़े सिपाही को देख कर  
बताओ कैसे इनके महबूब का प्यार लिखूँ,
इनके बच्चो का दुलार लिखूँ। 
जिन्दगी मुफलिस मे गुजरती है इनकी
फिर भी इनके ओठो की मुस्कान लिख रहा हूँ। 
तीस रूपये मे महीने भर चमकती 
वर्दी की कहानी लिख रहा हूँ ।
चार सौ रूपये मिलने वाले मकान भत्ते कि कहानी लिख रहा हूँ।
पुलिस आफिस मे बाबुओ की मनमर्जी 
और उनके शोषण का दर्द लिख रहा हूँ। 
बात बात सस्पेंड की मिलने वाली धमकी 
की कहानी लिख रहा हूँ
चोर भागे मोटरसाईकिल से सिपाही दैड़ाये साईकिल से
ऐसे मिलने वाले साईकिल भत्ते की कहानी लिख रहा हूँ।
धूप मे लाचार खड़े सिपाही का दर्द लिख रहा हूँ , 
प्यास के मारे बादलो को निहारते आँखो का पानी लिख रहा हूँ । 

(
सतीश कुमार पाण्डेय, उ प्र पुलिस में कांस्टेबल हैं।
यात्रा के अंक 12 में इनकी भी कविताएं छपी हुई हैं। उनमें से यह एक है।
-संपादक, यात्रा)