पुराने मक़बरों की शानो शौकत क्या बताऊं मैं
यहां इन्सान की कैसी है हालत, क्या बताऊं मैं
कोई कोई रहज़न, कोई क़ातिल, कोई पागल, कोई जाहिल
इन्हीं लोगों को क्यों मिलती है इज़्ज़त, क्या बताऊं मैं
अमीरों, हुक्मरानों के क़दम तुम ने ही चूमे हैं
अब उन के पांव के तलवों की लज़्ज़त क्या बताऊं मैं
सुना है कल यहां भी अम्न पर तक़रीरें होनी हैं
मगर बस्ती में क्यों फैली है दहशत, क्या बताऊं मैं
यहीं औरत को देवी मानते हैं, पूजा होती है
यहीं छह माह की बच्ची की अस्मत, क्या बताऊं मैं।
2
जो हम को थी वो बीमारी लगी ना
हंसी तुम को भी सिसकारी लगी ना
सफ़र आसान है, तुम कह रहे थे
क़दम रखते ही दुश्वारी लगी ना
समन्दर ही पे उंगली उठ रही थी
नदी भी इन दिनों खारी लगी ना
कहा था, पेड़ बन जाना बुरा है
बदन पर आज एक आरी लगी ना
मरे कितने ये छोड़ो, ये बताओ
मदद लोगों को सरकारी लगी ना।
3
नए लहजे उगाए जाते हैं
फिर क़सीदे सुनाए जाते हैं
उस तरफ़ कुछ अछूत भी हैं मगर
पांव किस के धुलाए जाते हैं
कोई बन्धन नहीं है लेकिन लोग
आदतन कसमसाए जाते हैं
मुल्क में अक़्लमंद हैं अब भी
क़ैदख़ानों में पाए जाते हैं
पहले मन्दिर बनाए जाते थे
आज कल मठ बनाए जाते हैं
हम ने ख़ुद को बचाया है ऐसे
जैसे पैसे बचाए जाते हैं
इस अंधेरे से हम को क्या ख़तरा
इस अंधेरे में साए जाते हैं।
4
कभी छिछली कभी चढ़ती नदी का क्या भरोसा है
शेयर बाज़ार जैसी ज़िन्दगी का क्या भरोसा है
यहां पिछले बरस के बाद फिर दंगा नहीं भड़का
रिआया ख़ौफ़ में है, ख़ामुशी का क्या भरोसा है
तबाही पर मदद को चांद भी नीचे उतर आया
मगर इस चार दिन की चांदनी का क्या भरोसा है
मिनट, घन्टे, सेकन्ड इन का कोई मतलब नहीं होता
समय को भांपना सीखो, घड़ी का क्या भरोसा है
वफ़ादारी, नमक क्या चीज़ है, इन्सान क्या जाने
ये कुत्ते जानते हैं, आदमी का क्या भरोसा है
महाभारत में अब के कौरवों ने शर्त यह रख दी
बिना रथ युद्ध होगा, सारथी का क्या भरोसा है।
5
कहां आंखों में आंसू बोलते हैं
मैं मेहनतकश हूं, बाज़ू बोलते हैं
कभी महलों की तूती बोलती थी
अभी महलों में उल्लू बोलते हैं
ज़बानें बंद हैं बस्ती में सब की
छुरे, तलवार, चाक़ू बोलते हैं
मुहाफ़िज़ कुछ कहें, धोखा न खाना
इसी लहजे में डाकू बोलते हैं
भला तोता और इंसानों की भाषा
मगर पिंजरे के मिट्ठू बोलते हैं
वहां भी पेट ही का मसअला है
जहां पैरों में घुंघरू बोलते हैं
जिधर घोड़ों ने चुप्पी साध ली है
वहीं भाड़े के टट्टू बोलते हैं
बस अपने मुल्क में मुस्लिम हैं 'सर्वत'
अरब वाले तो हिन्दू बोलते हैं।
6
सारा गाँव एकजुट था, अड़ गई हवेली फिर
और इक तमाचा-सा जड़ गई हवेली फिर
लालमन की हर कोशिश मिल गई न मिट्टी में
चार बीघा खेतों में बढ़ गई हवेली फिर
था गुमान भाषा में अब के हार जाएगी
कुछ मुहावरे लेकिन गढ़ गई हवेली फिर
मीलों घुप अंधेरे में रात भर चला, फिर भी
भोर में हथेली से लड़ गई हवेली फिर
नंगे-भूखे लोगों की खुल गईं जुबानें जब
आ के उनके पैरों में पड़ गई हवेली फिर
ज़ोर आज़माइश की, हर किसी ने कोशिश की
एक पल को उखड़ी थी, गड़ गई हवेली फिर।
7
अजब हैं लोग थोड़ी सी परेशानी से डरते हैं
कभी सूखे से डरते हैं, कभी पानी से डरते हैं
तब उल्टी बात का मतलब समझने वाले होते थे
समय बदला, कबीर अब अपनी ही बानी डरते हैं
पुराने वक़्त में सुलतान ख़ुद हैरान करते थे
नये सुलतान हम लोगों की हैरानी से डरते हैं
हमारे दौर में शैतान हम से हार जाता था
मगर इस दौर के बच्चे तो शैतानी से डरते हैं
तमंचा ,अपहरण, बदनामियाँ, मौसम, ख़बर, कालिख़
बहादुर लोग भी अब कितनी आसानी से डरते हैं
न जाने कब से जन्नत के मज़े बतला रहा हूँ मैं
मगर कम-अक़्ल बकरे हैं कि कुर्बानी से डरते हैं।
8
कितने दिन, चार, आठ, दस, फिर बस
रास अगर आ गया कफस, फिर बस
जम के बरसात कैसे होती है
हद से बाहर गयी उमस फिर बस
तेज़ आंधी का घर है रेगिस्तान
अपने खेमे की डोर कस, फिर बस
हादसे, वाक़यात, चर्चाएँ
लोग होते हैं टस से मस, फिर बस
सब के हालात पर सजावट थी
तुम ने रक्खा ही जस का तस, फिर बस
थी गुलामों की आरजू, तामीर
लेकिन आक़ा का हुक्म बस, फिर बस
सौ अरब काम हों तो दस निकलें
उम्र कितनी है, सौ बरस, फिर बस
9
अमीर कहता है इक जलतरंग है दुनिया
गरीब कहते हैं क्यों हम पे तंग है दुनिया
घना अँधेरा, कोई दर न कोई रोशनदान
हमारे वास्ते शायद सुरंग है दुनिया
बस एक हम हैं जो तन्हाई के सहारे हैं
तुम्हारा क्या है, तुम्हारे तो संग है दुनिया
कदम कदम पे ही समझौते करने पड़ते हैं
निजात किस को मिली है, दबंग है दुनिया
वो कह रहे हैं कि दुनिया का मोह छोड़ो भी
मैं कह रहा हूँ कि जीवन का अंग है दुनिया
अजीब लोग हैं ख्वाहिश तो देखिए इनकी
हैं पाँव कब्र में लेकिन उमंग है दुनिया
अगर है सब्र तो नेमत लगेगी दुनिया भी
नहीं है सब्र अगर फिर तो जंग है दुनिया
इन्हें मिटाने की कोशिश में लोग हैं लेकिन
गरीब आज भी जिंदा हैं, दंग है दुनिया।
10
लिखते हैं, दरबानी पर भी लिक्खेंगे
झाँसी वाली रानी पर भी लिक्खेंगे
आप अपनी आसानी पर भी लिक्खेंगे
यानी बेईमानी पर भी लिक्खेंगे
महलों पर लोगों ने ढेरों लिक्खा है
पूछो, छप्पर-छानी पर भी लिक्खेंगे
फ़रमाँबरदारों को इस का इल्म नहीं
हाकिम नाफ़रमानी पर भी लिक्खेंगे
अपना तो कागज़ पर लिखना मुश्किल है
और अनपढ़ तो पानी पर भी लिक्खेंगे
बस, कुछ दिन, खेती भी किस्सा हो जाए
खेती और किसानी पर भी लिक्खेंगे