(अत्तिला इल्हान (15 जून 1925 -10 अक्टुबर 2005) आधुनिक तुर्की साहित्य
का एक प्रमुख नाम है। उनकी ख्याति एक कवि, उपन्यासकार , पटकथा लेखक,
संपादक और निबंध लेखक के रूप में रही है।)
अत्तिला इल्हान की कविताएँ
अनुवाद: सिद्धेश्वर सिंह
प्रतीक्षा
वह बोली प्रतीक्षा करो, मैं आऊँगी
मैंने नहीं की प्रतीक्षा , वह आयी भी नहीं
यह सब कुछ था मृत्यु की मानिन्द
लेकिन नहीं आयी किसी को मौत।
कौन है वह
दरवाजे की बजती घंटी के साथ
मैं दौड़ पडा़
मैंने खोला द्वार और झाँका
नहीं, कोई नहीं यहाँ।
मैंने निश्चित रूप से
सुनी थी घंटी की आवाज
जरूर किसी ने बजाया था उसे
क्या यह मैं हूँ
चालीस साल छोटा
जिसे छोड़ा गया था गिरफ्त से।
मेरा नाम पतझड़
यह कैसे हुआ पता नहीं
चारों ओर झड़ने लगे
रोशनी में तैरते
प्लम की गाछ के पत्ते
तुम जिधर भी देखते हो
धुंधलाई हैं तुम्हारी आंखें
फिर भी
मैं परिवर्तित हो गया शाम में
धीरे - धीरे हौले - हौले
झड़ रहे हैं मेरे पत्ते
मेरा नाम है शरद
मेरा नाम पतझड़।
तुम अनुपस्थित हो
तुम अनुपस्थित हो
यहाँ नहीं है कोई समुद्र
सितारे हैं मेरे मीत
आज की रात कुछ घटित होगा चमत्कार की तरह
या बम की तरह तड़क जाएगा मेरा माथा
कुछ पुरानी कविताएँ कंठ में धारण किए, मैं हूँ यहाँ
इस्तांबुल की मीनारें मेरे कमरे में हैं विद्यमान
आकाश है खुला और चमकीला
देखो, हमारे अच्छे दिनों ने आपस में कस ली हैं भुजाएँ
एक विपरीत हवा बह रही है
एक दूजे से विलग समुद्र तटों पर
फास्फोरस से भरी है रोशनी
आकाश एक समुद्र है
हवा में हैं पंखों की आवाजें
और अबूझ वनैली गंध
यहाँ कोई समुद्र नहीं
सितारे होते जा रहे हैं धूमिल
फिर - फिर मैं अकेला हूँ यहाँ
इस्तांबुल... मीनारें ...सब गुम हो गई हैं कहीं
तुम हो अनुपस्थित
अब अनुपस्थित हो तुम।
जैसे मैं हूँ अपने नाम के साथ
स्मृतियों की जरूरत नहीं तुम्हें याद करने के लिए
तुम एक क्षण के लिए भी अलग नहीं हो सकतीं मेरे मस्तिष्क से
तुम्हारा चलना, जैसे तेज दौड़
तुम्हारी चमकदार मुस्कान जैसे अँधियारे में रोशन।
स्मृतियों की जरूरत नहीं तुम्हें याद करने के लिए
सुदूरवर्ती सितारों में लिपटा है ब्रह्मांड
जबकि समय बीत रहा है उनकी शून्यता में।
जैसे मैं हूँ अपने नाम के साथ वैसे ही हम दोनो एक संग
तुम्हारे साथ है हर घंटा , हर मिनट, हर सेकेन्ड
हमारे हृदय प्रसन्नता के यकीन में कर रहे हैं विश्राम
हमारे सिर जैसे काँख में दबाये हुए डायनामाइट्स
और यह भी कि इस प्रारब्ध के उजाले में दिपदिपा रहा है हमारा सच
ऐसा किसी सूरत में , किसी भी स्थिति में
किसी और नश्वर जीवन को उपलब्ध।
स्मृतियों की जरूरत नहीं तुम्हें याद करने के लिए
तुम तुम उतना ही करीब हो मेरे
जितना कि मेरा हृदय , जितना कि मेरे एक जोड़ी हाथ।
(यात्रा-7 से)
अत्तिला इल्हान की कविताएँ
अनुवाद: सिद्धेश्वर सिंह
प्रतीक्षा
वह बोली प्रतीक्षा करो, मैं आऊँगी
मैंने नहीं की प्रतीक्षा , वह आयी भी नहीं
यह सब कुछ था मृत्यु की मानिन्द
लेकिन नहीं आयी किसी को मौत।
कौन है वह
दरवाजे की बजती घंटी के साथ
मैं दौड़ पडा़
मैंने खोला द्वार और झाँका
नहीं, कोई नहीं यहाँ।
मैंने निश्चित रूप से
सुनी थी घंटी की आवाज
जरूर किसी ने बजाया था उसे
क्या यह मैं हूँ
चालीस साल छोटा
जिसे छोड़ा गया था गिरफ्त से।
मेरा नाम पतझड़
यह कैसे हुआ पता नहीं
चारों ओर झड़ने लगे
रोशनी में तैरते
प्लम की गाछ के पत्ते
तुम जिधर भी देखते हो
धुंधलाई हैं तुम्हारी आंखें
फिर भी
मैं परिवर्तित हो गया शाम में
धीरे - धीरे हौले - हौले
झड़ रहे हैं मेरे पत्ते
मेरा नाम है शरद
मेरा नाम पतझड़।
तुम अनुपस्थित हो
तुम अनुपस्थित हो
यहाँ नहीं है कोई समुद्र
सितारे हैं मेरे मीत
आज की रात कुछ घटित होगा चमत्कार की तरह
या बम की तरह तड़क जाएगा मेरा माथा
कुछ पुरानी कविताएँ कंठ में धारण किए, मैं हूँ यहाँ
इस्तांबुल की मीनारें मेरे कमरे में हैं विद्यमान
आकाश है खुला और चमकीला
देखो, हमारे अच्छे दिनों ने आपस में कस ली हैं भुजाएँ
एक विपरीत हवा बह रही है
एक दूजे से विलग समुद्र तटों पर
फास्फोरस से भरी है रोशनी
आकाश एक समुद्र है
हवा में हैं पंखों की आवाजें
और अबूझ वनैली गंध
यहाँ कोई समुद्र नहीं
सितारे होते जा रहे हैं धूमिल
फिर - फिर मैं अकेला हूँ यहाँ
इस्तांबुल... मीनारें ...सब गुम हो गई हैं कहीं
तुम हो अनुपस्थित
अब अनुपस्थित हो तुम।
जैसे मैं हूँ अपने नाम के साथ
स्मृतियों की जरूरत नहीं तुम्हें याद करने के लिए
तुम एक क्षण के लिए भी अलग नहीं हो सकतीं मेरे मस्तिष्क से
तुम्हारा चलना, जैसे तेज दौड़
तुम्हारी चमकदार मुस्कान जैसे अँधियारे में रोशन।
स्मृतियों की जरूरत नहीं तुम्हें याद करने के लिए
सुदूरवर्ती सितारों में लिपटा है ब्रह्मांड
जबकि समय बीत रहा है उनकी शून्यता में।
जैसे मैं हूँ अपने नाम के साथ वैसे ही हम दोनो एक संग
तुम्हारे साथ है हर घंटा , हर मिनट, हर सेकेन्ड
हमारे हृदय प्रसन्नता के यकीन में कर रहे हैं विश्राम
हमारे सिर जैसे काँख में दबाये हुए डायनामाइट्स
और यह भी कि इस प्रारब्ध के उजाले में दिपदिपा रहा है हमारा सच
ऐसा किसी सूरत में , किसी भी स्थिति में
किसी और नश्वर जीवन को उपलब्ध।
स्मृतियों की जरूरत नहीं तुम्हें याद करने के लिए
तुम तुम उतना ही करीब हो मेरे
जितना कि मेरा हृदय , जितना कि मेरे एक जोड़ी हाथ।
(यात्रा-7 से)
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